ये संसार म भुइंया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हाबय भारत। जहां भुइंया ल महतारी अऊ किसान ल ओखर लईका कहे जाथे। ये संसार म अन्न के पूरती करईया अन्नदाता किसान हे। हमर छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे। हमर सभ्यता, संसकिरीति म तिहार के बड़ महत्तम हाबय। हमर सभ्यता अऊ संसकिरीति म ये तिहार मन रचे बसे हावय। ये तिहार म दान के परब छेरछेरा घलो हावय।
हमर ये छेरछेरा तिहार पुस पुन्नी के दिन मनाये जाथे। फसल ल खेत-खार ले डोहार के कोठार म मिसे बर, कोठार ल बढ़िया छोल-बहार के गोबर पानी म लिप-बहार के अन्न दाई के रूप म आये फसल ल मिसथे ओखर बाद बिंयारा म रास बनाके अन्नपुरना दाई ल लछमी दाई के रूप म नरियर, अगरबत्ती, हूम-धूप, फूल-पान अऊ दूबी ले पूजा करे जाथे। वोखर बाद अन्नदाई ल कोठी म आदर के साथ रखे जाथे। वोखर बाद आथे पुस पुन्नी के तिहार छेरछेरा। ये दिन गांव-गांव म लईकन मन ले सियान मन तक घरो-घर जाके छेरछेरा मांगथें अऊ किसान मन खुसी-ख्ुसी कोठी म रखे अन्न के दान करथे। सबो कतिक एक के गोहार सुनाई देथे – ‘‘ छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेरते हेरा ’’। ये दिन का लईका का जवान त का सियान सबे बिहनिया ले छेरछेरा मांगे बर घरो-घर जाथे। ये दिन का गरीब का अमीर। कहे के मतलब ये हाबय के ये तिहार ह हमन ल आपस म भाईचारा बनाये के संदेस देथे। ये दिन अमीर अऊ गरीब के भेदभाव मिट जाथे। अऊ सबेच के मुंह म एकेच गोहार होथे छेरछेरा। कई ठो हाना पारे जाथे जईसे के-
अरन-बरन कोदो दरन, जबे देबे तभे टरन।
तारा रे तारा लोहार घर के तारा,
लऊहा- लऊहा बिदा देवव, जाबो आन पारा।
किसान मन भी खुसी-खुसी अन्न के दान करके अपनआप ल धन्य मानथे। असल म छेरछेरा तिहार ह समाजिक अऊ आरथिक समानता के तिहार हाबय। ये तिहार अपन रोटी सबकरा मिल बांट के खायेके संदेस देथें। हमन ल अपन संसकिरीति ल बनाये रखे बर ये तिहार के अंजोर परंपरा ल बनाये रखना हे।
प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला- जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)
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